सीएमएचओ के विरुद्ध यदि लाेकायुक्त विधिसम्मत कार्रवाई न करे तो पुन: दायर कर सकते हैं याचिका

-हाई कोर्ट ने तीन माह की समय-सीमा का किया निर्धारण

विनोद जैन जबलपुर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विशाल धगट की सिंगल बेंच ने एक याचिका का इस निर्देश के साथ निराकरण कर दिया कि यदि जबलपुर के प्रभारी सीएमएचओ और क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं डा.संजय मिश्रा के विरुद्ध लोकायुक्त में की गई शिकायत पर तीन माह की समयावधि में विधिसम्मत कार्रवाई न की जाए तो याचिकाकर्ता पुन: हाई कोर्ट आने में स्वतंत्र होगा। याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत यह याचिका दायर की थी।

उसने प्रतिवादी लोकायुक्त मध्य प्रदेश को उसकी शिकायत पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश देने की प्रार्थना की थी। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत की जांच करने पर पता चला है कि शिकायत 16 जुलाई, 2024 को दर्ज की गई थी और दूसरा पत्र 30 अगस्त, 2024 को दिया गया था। याचिकाकर्ता कुछ समय इंतजार करने के स्थान पर अपेक्षाकृत शीघ्रता से हाई कोर्ट चला आया। कायदे से उसे प्रतीक्षा करनी थी और देखना था कि उसकी शिकायत पर विचार किया जा रहा है या नहीं। इन परिस्थितियों में हाई कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता। हालांकि, याचिकाकर्ता को तीन महीने की अवधि के बाद पुन: याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी जाती है, यदि लोकायुक्त द्वारा उनकी शिकायत पर कानून के अनुसार विचार या निर्णय नहीं किया जाता। याचिकाकर्ता जबलपुर के विसिल ब्लोअर एक्टिविस्ट नरेंद्र कुमार राकेशिया ने याचिका के जरिए आरोप लगाया था कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जबलपुर डा. संजय मिश्रा की स्वास्थ्य विभाग में प्रथम नियुक्ति ही अवैध है और इसलिए उनकी विभागीय पदोन्नति भी अवैध है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जबलपुर तथा क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं जबलपुर संभाग, इन दो प्रशासनिक पद पर पदस्थ होने के कारण डॉ मिश्रा के द्वारा पैथोलॉजी लैब की प्राइवेट प्रेक्टिस भी गैरकानूनी है। जिला अस्पताल में पदस्थ होने पर भी उनके द्वारा प्राइवेट अस्पताल में अवैध सेवा देना शासन निर्देशों के विपरीत है। दाे से अधिक पैथोलाजी लैब का अवैध संचालन भी जांच का विषय है। बिना शासन की अनुमति के डाक्टर मिश्रा द्वारा दूसरा विवाह करना और दूसरी पत्नी के साथ मिलकर बिना शासन की अनुमति के संयुक्त रूप से संपत्ति खरीदना शासन के नियमों के विपरीत है। इसके अतिरिक्त सुखसागर मेडिकल कालेज काे अवैध लाभ पहुंचाने की शिकायत भी गंभीर है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता के द्वारा पैरवी की गई।

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