शेरा मिश्रा, विजयराघवगढ़। आज के नयी पिढी मे कुटुम्ब परिवार का नाम रोशन करने वाली आज की कुछ ही देखी गयी है ज्यादातर अमीरो पिढी चलाने वाले बालक गलत संगत का शिकार हो जाते हैं माता पिता की दौलत से नेकी के कार्य करने की बजाए मित्रों की खुशामदी करते हुए अपने साथ साथ सभी को ले डुबते है। किन्तु जो संस्कारों के साथ गलत संगत से बच गया वही कुल व बंस का नाम रोशन कर्ता है। जिस तरह मदनलाल ग्रोवर ने अपने जीवन मे संघर्ष पूर्ण जीवन के साथ सफर तय किया और अपनी भाषा बोली के साथ लोगों के दिलो मे जगह बनाते हुए आज ख्याति प्राप्त कर उस मुकाम पर पहुंचे जहा ता पहुंच पाना आसान नही होता। अनेकों ठोकरों के पश्चात कभी गिरते कभी सम्हलते आखिर कार मंजिल तक पहुंच ही गये। मदनलाल ग्रोवर जिस उंचाई पर है वहां तक पहुंचना कोई आसान नही था। किन्तु जिसने जमाने की ठोकरों से सबक लिया हो वह निडर होकर मंजिल तक पहुंच ही जाता है। मदनलाल ग्रोवर का भाग्य और भोलेनाथ की कृपा साथ रही उनका संघर्ष उनका परिश्रम देख पत्थर भी पिघलने पर मजबूर हुए। इन सभी कडे परिश्रमों के बाद जब एक मुकाम मिला एक नयी पहचान मिली तो एक इस कायनात को सम्भालने वाला एक बारिश हुआ जिसका नाम रंजन ग्रोवर बाबू ग्रोवर हुए शिशु से युवक तक के सफर मे शिक्षा और माता पिता के संस्कारों से किंचित हुए बाबू ग्रोवर जब व्यापारिक मैदान पर आए तो देखा गया की पाता से भी चार कदम तेज चलने का जज्बा है। गरीबों के प्रति स्नेह प्रेम और अपना पन पिता से अधिक है। क्या ऐसा था की उद्योगपति मदनलाल ग्रोवर के पुत्र जिनको विरासत मे पिता की धन दौलत मिली जिन्होंने कभी दुख व गरीबी को देखा न हो फिर भी वह गरीबी का अहसास रखते हैं गरीबों का दर्द समझते हैं। बाबू ग्रोवर को बुरी संगत नही मिली या फिर कोई और बात थी। एक अमीर पिता होने का घमंड कभी पुत्र बाबू ग्रोवर मे नही देखा गया बल्कि एक शिवभक्त समाज सेवी मानव सेवक के पुत्र की छवी के साथ उन्होंने तख्तोताज संभाला और उद्योग की दुनिया मे पैर रख कर नये साम्राज्य की स्थापना की। बाबू ग्रोवर के मस्तिष्क की ललाट पर दमकता सौर्य आंखो पर तेज आंखो पर स्नेह प्रेम होटों पर मधुर वाडी दिल पर गरीबों के लिए सम्मान इन सभी खुशियों के बाद भी न कोई घमंड न अहम एक इंसान दूसरे इंसान के लिए समर्पित किस तरह रहता है यह बाबू ग्रोवर की जीविता से यह हुनर लेना चाहिए। बाबू ग्रोवर ने हमेशा अपनी तारीफ व अपने परिवार की गाथा दुनिया से छुपा कर रखी एक हाथ से दान करते हैं जिसका पता दूसरे हाथ को भी नही होता। किन्तु नेकी कहा छुपती है जनाब नेकी करने वाले तो अमर होते हैं ग्रोवर परिवार आज अजय अमर हो गया। मदनलाल ग्रोवर जी ने भी कभी कल्पना नही की रही होगी जिस जगह छोटी सी मंदिर बना रहा हू वह कभी नीलकंठेशवर भक्ति धाम के नाम से महानगरी के रुप मे विख्यात होगा। कभी उनका इकलौता नन्हा सा बालक युवा अवस्था मे ही माता पिता का नाम गौरवान्वित करेगा। मदनलाल ग्रोवर व उनकी धर्मपत्नी का जीवन सफल हुआ दो बच्चो मे एक बेटी एक बेटा है बेटा किस तरह दुनिया मे अपने पिता की अलौकिक तपोभूमि नीलकंठेशवर भक्ति धाम मे महाकाल के साथ साथ इंशा नीयत मानवता के पूजारी बन कर कार्य कर रहे हैं जिनका परिचय आज दुनिया की जुवान पर है। किन्तु मदनलाल ग्रोवर जी की बेटी भी इस परिवार का हिरा है आय के युग की लक्ष्मी है भारतीय संस्कृति किताबी ज्ञान के साथ साथ धार्मिक अध्यात्म से अधिक प्रेम रखने वाली बेटी पिता के घर से जाने के बाद दूसरे परिवार कुटुम्ब को रोशन कर रही है। एक इंसान को ईश्वर की सेवा के साथ बच्चों का जीवन सबर जाए तो जीवन सफल माना जाता है।

- स्व. श्री विनोद कुमार बहरे