संतोष मिश्रा कटनी। रेप, मारपीट आदि मामलों में पुलिस को पीड़ित का मेडिकल करवाना होता है, जैसे पुलिस के लिए ऐसा करना अनिवार्य होता है वैसे ही चिकित्सकों का दायित्व होता है पीड़ित का मेडिकल परीक्षण। चिकत्सक के परीक्षण के बाद ही रेप की पुष्टि होती है, मारपीट आदि के मामले में भी चोट की गम्भीरता चिकत्सक ही तय करते हैं और इसके लिए स्वास्थ्य विभाग बाध्य है, उनकी सेवा शर्तों में शामिल है मेडिको लीगल कार्य। परन्तु वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है, खासकर कटनी जिला चिकित्सालय में। चूंकि जिले में स्थित अन्य अधिकांश शासकीय अस्पतालों में महिला चिकित्सक न होने के कारण रेप पीड़तों को मेडिकल परिक्षण के लिए जिला चिकित्सालय ही लाना पड़ता है। पुलिस ऐसे मामलों में बिना विलम्ब पीड़ित को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंचती है पर यहां चिकित्सकों की उदासीनता के चलते लम्बा इंतजार करना होता है, जबकि नियमतः हर वक्त एक महिला चिकित्सक की मौजूदगी अनिवार्य है। कई कई घण्टों (कई बार तो एक दो दिन) के इंतजार के बाद महिला चिकित्सक मेड़ीकल परीक्षण उपरांत रिपोर्ट के लिए भी पुलिस को चक्कर लगवाती हैं। रिपोर्ट जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत टाइप ही होनी चाहिए कटनी जिला चिकित्सालय में अभी भी हस्तलिखित दी जाती है। मेडिकल परीक्षण में किट (नेलकटर, कैंची, टेस्ट-ट्यूब,डिब्बी) का उपयोग अनिवार्य है, पीड़ित के नाखून, बाल, कपड़ों में रेप के साक्ष्य होने पर इन्हें काटकर डिब्बी में सुरक्षित रखकर जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजा जा सके, कटनी जिला चिकित्सालय में चिकत्सक किट का उपयोग नहीं करते हैं, साक्ष्य सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी पूर्णतः पुलिस के ऊपर थोप दी जाती है। बनने वाली स्लाइड को सील करवाने के लिए भी पुलिस को मसक्कत करनी पड़ती है, कई बार तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को सिविल सर्जन और मुख्य चिकत्सा अधिकारी से बात करनी पड़ती है तब कहीं जाकर मेडिकल परीक्षण पूरा हो पाता है। इसके बाद पुनः पीड़ित को सोनोग्राफी के लिए चिकित्सालय लाना पड़ता है इसके लिए भी कई दिनों तक भटकाया जाता है और फिर रिपोर्ट के लिए भी। ताजातरीन मामले में विजयराघवगढ़ थाना क्षेत्र की एक रेप पीड़िता को अभी तक मेडिकल परीक्षण और सोनोग्राफी के लिए अब तक 6 बार चिकित्सालय के चक्कर लगाने पड़े हैं, पीड़ित को पुलिस के साथ लेकर आने वाले एनजीओ जन साहस के फील्ड ऑफिसर मुकेश द्विवेदी ने सी टाइम्स को बताया कि उनका एनजीओ बच्चों, महिलाओं और प्रवासी श्रमिकों के लिए काम करता है। हमारी संस्था के कर्मचारी रेप पीड़िता को अब तक 6 बार जिला चिकित्सालय लेकर आये हैं जिसका पूरा खर्च हमारा एनजीओ उठाता है,पीड़ित के साथ माता-पिता या परिजन भी आते हैं। जिला चिकित्सालय से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता है मेडिकल परीक्षण, सोनोग्राफी और फिर रिपोर्ट के लिए चक्कर लगवाए जाते हैं, कई बार तो इतना विलम्ब होता है कि साक्ष्य ही नष्ट हो जाते हैं और केस कमजोर हो जाता है। सम्बंधित मामले में घटना 10/9 की है और सोनो ग्राफी शनिवार 28/9 को हो रही है, जिसपर रिपोर्ट अभी भी अप्राप्त है, रिपोर्ट के लिए सांय साढ़े पांच बजे का समय दिया है। श्री द्विवेदी के अनुसार विलम्ब और इंतजार का ये कोई पहला मामला नहीं है अधिकांश मामलों में चिकित्सकों की उदासीनता और लापरवाही पीड़तों के लिए तकलीफदेह और केस को कमजोर बनाती हैं। पुलिस जो ऐसे मामलों में अपना काम ठीक से करती है जिला चिकित्सालय की विलम्ब करने की प्रवृत्ति के कारण अक्सर कठघरे में खड़ी होती आयी हैं, क्योंकि अधिकांश लोगों की सोच है कि ये सब पुलिस के काम हैं और पुलिस गम्भीर नहीं हैं, जबकि ऐसा नहीं है, सच आपके सामने है। आखिर कब देगा गम्भीरता और जिम्मेदारी का परिचय जिला चिकित्सालय जो अपनी व्यवस्थाओं के लिए कुख्यात है।
- स्व. श्री विनोद कुमार बहरे